17. संस्कृति
लेखक- भदंत आनंद कौसल्यायन
भदंत आनंद कौसल्यायन का जन्म 1905 में पंजाब के अंबाला जिले के सोहाना गाँव में हुआ।
उनके बचपन का नाम हरनाम दास था। लाहौर के नेशनल कॉलिज से बी.ए. किया।
बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।
गांधी जी के साथ वर्धा में लंबे समय तक रहे।
1988 में इनका निधन हो गया।
इन्होंने 20 से अधिक पुस्तकें लिखी। जिनमें भिक्षु के पत्र, जो भूल ना सका, आह! ऐसी दरिद्रताा, बहानेबाजी, यदि बाबा ना होते, रेल का टिकट, कहाँ क्या देखा आदि प्रमुख हैं।
वे महात्मा गांधी के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित थे।
उनके द्वारा सरल, सहज बोलचाल की भाषा में लिखे निबंध, संस्मरण और यात्रा वृतांत काफी चर्चित रहे हैं।
17. संस्कृति पाठ का सारांश
मानव सभ्यता और संस्कृति के शब्द विचारशीलता की दिशा में एक महत्वपूर्ण संकेत प्रस्तुत करते हैं। इन शब्दों का उपयोग जब विभिन्न विशेषणों के साथ किया जाता है, तो उनका अर्थ समझ में कठिनाई हो सकता है। क्या सभ्यता और संस्कृति एक ही चीज़ हैं, या ये दो अलग-अलग वस्तुएँ हैं? इसे समझने की कोशिश करते हैं।
हम उन दिनों की कल्पना कर सकते हैं जब मानव समाज ने आग का आविष्कार नहीं किया था। आजकल, हमारे हर घर में एक चूल्हा होता है, लेकिन आग का आविष्कार करने वाला व्यक्ति कितना महत्वपूर्ण था!
एक और उदाहरण के रूप में, हम सोच सकते हैं कि मानव को कभी न सुई-धागे के बारे में ज्ञान था, लेकिन फिर भी किसी ने उसकी खोज की और इसे आविष्कारिक रूप से उपयोगी बनाया।
इन उदाहरणों से हम देख सकते हैं कि व्यक्ति की योग्यता, प्रवृत्ति, और प्रेरणा से आग और सुई-धागे के आविष्कार हुआ, और इसे हम संस्कृति कह सकते हैं। जिस तरह से यह आविष्कार हुआ और उसका उपयोग किया गया, उसका नाम है सभ्यता।
सभ्यता और संस्कृति के बारे में सोचते समय हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि संस्कृति उसकी सभ्यता का एक हिस्सा है, और उसमें समाज के विभिन्न पहलुओं की जानकारी, ओढ़ने-पहनने का तरीका, गमनागमन के साधन, और अन्य कई चीजें शामिल होती हैं। संस्कृति का महत्व समझने के लिए हमें यह भी देखना चाहिए कि यह किस प्रकार से समाज के सदस्यों के द्वारा उत्पन्न होती है और कैसे यह उनकी योग्यता के साथ जुड़ी होती है। अगर संस्कृति का महत्व कल्याण की दिशा में नहीं होता, तो वह असंस्कृति की ओर बढ़ सकती है।
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