द्वादशः पाठः
अन्योक्तयः
प्रस्तुतः पाठः अन्योक्तिविषये वर्तते। अन्योक्तिः नाम अप्रत्यक्षरूपेण व्याजेन वा कस्यापि दोषस्य निन्दायाः कथनम्, गुणस्य प्रशंसा वा। सघ्वेफतमाध्यमेन व्यज्यमानाः प्रशंसादयः झटिति चिरञ्चय बुद्धो अवतिष्न्ते। अत्रापि सप्तानाम् अन्योक्तीनां सघ्ग्रहो वर्तते। याभिः राजहंस-कोकिल-मेघ-मालाकार-तडाग-सरोवर-चातकादीनां माध्यमेन सत्कर्म प्रति गमनाय प्रेरणा प्राप्यते।
पाठ परिचय – ‘अन्योक्ति’ का अर्थ है- जिसमें एक से कही हुई बात किसी दुसरे पर घटित हो। यह अप्रत्यक्ष रूप से अथवा किसी बहाने से कही जाती है। जब किसी प्रतीक या मध्यम से किसी के गुण की प्रशंसा या दोष की निन्दा की जाती है, तब वह पाठकों के लिए अधिक ग्राह्म होती है। प्रस्तुत पाठ में एसी ही सात अन्योक्तियों का संग्रह है जिसमें रजहंस, कोकिल, मेंघ, मालाकार, सरोवर तथा चातक के मध्यम से मानव को सद्ववृत्तियों एवं सत्कर्मो के प्रति प्रवृत्ति होने का संदेश दिया गया है। ये हमारे लिए अत्यधिक प्रेरक होती हैं तथा मनोहरिणी भी ।
एवेफन राजहंसेन या शोभा सरसो भवेत् ।
न सा बकसहस्त्रेण परितस्तीरवासिना ।।1।।
हिन्दी अनुवाद – एक राजहंस के द्वारा तालाब की जो शोभा होती है। उसके चारों ओर हजारों बगुलों से भी वह (शोभा) नहीं हो सकती है।
भुक्ता मृणालपटली भवता निपीता-
न्यम्बूनि यत्रा नलिनानि निषेवितानि ।
रे राजहंस! वद तस्य सरोवरस्य,
कृत्येन केन भवितासि कृतोपकारः ।। 2।।
हिन्दी अनुवाद – (हे राजहंस!) जहाँ आपके द्वारा कमलनाल के समूह को सेवन किया गया, जल पीया गया, कमलों का सेवन किया गय । हे राजहंस! उस सरोवर का किस कार्य के द्वारा प्रत्युपकार होगा? तुम बताओं ।
तोयैरल्पैरपि करुणया भीमभानौ निदाघे,
मालाकार! व्यरचि भवता या तरोरस्य पुष्टिः ।
सा किं शक्या जनयित मिह प्रावृषेण्येन वारा ,
धरासारानपि विकिरता विश्वतो वारिदेन ।।3।।
हिन्दी अनुवाद – हे माली ! भीषण ग्रीष्मकाल की गरमी से थोड़े से ही जल द्वारा आपके द्वारा करूणापूर्वक इस वृक्ष का जो पोषण किया गया। क्या वर्षाकालीन जल के चारो ओर से धाराओं को बरसाने से बादल के द्वारा वह पोषण किया जा सकता है ?
आपेदिरेऽम्बरपथं परितः पतग्ड्:,
भृग्ड् रसालमुकुलानि समाश्रयन्ते ।
सक्डोचमञ्चति सरस्त्वयि दीनदीनो,
मीनो नु हन्त कतमां गतिमभ्युपैतु ।। 4।।
हिन्दी अनुवाद – पक्षी आकश में चारों ओर भटक रहे हैं। भौंरे आम की मञ्जरियों की शरण लेते हैं। हे तालाब ! कष्ट है, तुम्हारे संकुचित होने (जल घटने) पर बेचरी मछली किस गति को पावे ?
एक एव खगो मानी वने वसति चातकः ।
पिपासितो वा म्रियते याचते वा पुरन्दरम् ।।5।।
हिन्दी अनुवाद – (अकेला) एक ही स्वाभिमानी पक्ष वन में रहता है। वह या तो प्यास ही मर जाता है या (केवल) इन्द्र से याचना करता हैं।
आश्वास्य पर्वतकुलं तपनोष्णतप्त-
मुद्दामदावविधुराणि च काननानि ।
नानानदीनदशतानि च पूरयित्वा,
रिक्तोऽसि यज्जलद! सैव तवोत्तमा श्रीः ।।6।।
हिन्दी अुवाद – सूर्य की गरमी से तपे हुए पर्वत समूह (को) और ऊँचे वृक्षों से रहित वनों को (जल से) आश्वस्त करके अनेक नदियों व सैकड़ो नदी (नालो) को भरकर हे मघ ! तुम जो रिक्त (खाली) हो गए हो यही तुम्हारी उत्तम शोभा (निधि) है।
रे रे चातक! सावधनमनसा मित्रा! क्षणं श्रूयता-
मम्भोदा बहवो भवन्ति गगने सर्वेऽपि नैतादृशाः ।
केचिद् वृष्टिभिरार्द्रयन्ति वसुधं गर्जन्ति केचिद् वृथा,
यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रूहि हि दीन वचः ।।7।।
हिन्दी अनुवाद – अरे हे मित्र चातक ! ध्यान से क्षणभर सुनो । आकाश में अनेक मेघ हैं। सभी ऐसी (बरसने वाले) नहीं है (इनमें से) कुछ (मेघ) धरती को वर्षा से गीत करते हैं (और) कुछ व्यर्थ में गरजते (ही) हैं। तुम जिसे-जिसे (मेघ) को देखते ही उस-उसके (हरेक के) सामने (बरसने के लिए) दीन वचन मत बोलो ।
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