इस पोस्ट में हमलोग सीबीएसई बोर्ड के हिन्दी के गद्य भाग के पाठ चौदह ‘एक कहानी यह भी’ (cbse class 10 Hindi Ek Kahani Yah bhi Summary Notes Solutions) के व्याख्या को पढ़ेंगे।
पाठ-14
एक कहानी यह भी
लेखक – मन्नू भंडारी
पाठ का सारांश
लेखिक ने अपने जन्म स्थान भानपुरा गाँव, जिला मध्यप्रदेश के राजस्थान में अजमेर के ब्रहमपुरी मोहल्ले के दो मंजिले मकान से जुड़ी हर बातों को याद किया है। इन्हीं मकानों में किताबों और अखबारों के बीच उनके पिता कुछ लिखते रहते थे या डिक्टेशन देते रहते थे। और बाकी के नीचे की कमरे में उनकी माँ, भाई-बहन बाकि घर के और लोग रहते थे।
लेखिका के पिता अजमेर आने से पहले मघ्य प्रदेश के इंदौर में रहते थे। वह बहुत से सामाजिक संगठनों से भी जुड़े थे। उन्होंने शिक्षा का केवल उपदेश ही नहीं दिया बल्कि बहुत से बच्चों को अपने घर पर बुलाकर पढ़ाया लिखाया भी। जिसमें से कई बच्चें ऊँचे-ऊँचे पद पर पहुँचे। लेखिका ने यह सब बाते तब सुनी थी जब उनके खुशी के दिनों की बात है।
लेखिका का यह मानना था कि उनके पिताजी एक अंदर से टूटे हुए व्यक्ति थे। जो कि बड़े आर्थिक झटके की वजह से इंदौर से अजमेर आ गए। उन्होंने अपने बलबुते पर अधुरे अंग्रेजी शब्दकोश को पुरा कर रहे थे। लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ।
NCERT/CBSE Class 10th Hindi Ek Kahani Yah bhi Summary Notes
लेखिका को यह पता चलता है कि उनकी व्यक्तित्व में उनकी पिता कि कुछ कमियाँ ओर खुबियाँ तो जरूर आ गई होंगी। लेखिका का रंग काला है और बचपन में वह दुबली और मरियली सी थी। उनके पिता को गोरा रंग बहुत पसंद था। इसी के वजह से लेखिका से दो की बड़ी उसकी बहन थी जिसके साथ उसका तुलना किया जाता था। जिस वजह से लेखिका के मन में हीन भावना उत्पन्न हो गई जा आज तक है। उसी कारण आज जब भी लेखिका की प्रसंसा होती है, उनको मान सम्मान प्रतिष्ठा मिलती है तो लेखिका संकोच से सिमटने और गड़ने लगती है।
लेखिका की माँ एक अनपढ़ महिला थी। लेखिका की माँ का स्वभाव अपने पति जैसा नहीं था। वो अपने पति के क्रोध को चुपचान सहते हुए खुद को घर के कामों में व्यस्थ रखती थी। अनपढ़ होने के बाद भी लेखिका की माँ बहुत ही सहनशील थी। इसलिए वह अपने पति के हर अत्याचार को अपना भाग्य समझकर सहती थी। उन्होंने अपने परिवार से कभी कुछ नहीं माँगा, बल्कि जहाँ तक हो सके सिर्फ दिया हीं दिया है। उसी कारण से लेखिका आज तक उन्हें आदर्श के रूप में स्वीेकार न कर सकी।
लेखिका पाँच भाई-बहनों में सबसे छोटी थी। जब उनकी बड़ी बहन सुशीला की शादी हुई तो लेखिका लगभग सात साल की थी। उन्होंने अपनी बड़ी बहन के साथ लड़कियों के सारे खेल खेले, उन्होंने लड़को के भी कुछ खेल खेले है। घर पर भाईयों के रहने के वजह से वह ज्यादा लड़को वाले खेल नहीं खेल पाई। उस समय आज की तरह पास-पड़ोस की दायरा आज की तरह नहीं थी। आज तो हर व्यक्ति अपने आप में ही सिमट के रह जाते है। पास-पड़ोस की कई यादे कई बार पात्रों के रूप में लेखिका की आरंभिक रचनाओं में आ गई हैं।
1944 में लेखिका की बड़ी बहन की शादी हो गई और वह कोलकŸाा चली गई। उसके दोनों भाई भी पढ़ने के लिए कोलकता चले गए। उसके बाद लेखिका के पिताजी का ध्यान लेखिका पर गया।
लेखिका के पिताजी ने उनसे घर के काम-काज में दूर रहने को कहा जाता है। क्योंकि वह मानते थे कि रसोई के काम का अर्थ अपनी प्रतिभा को भट्टी में झोकना था। इनके पिताजी के पास कई लोग मिलने के लिए आते थे। लेखिका जब चाय लेकर जाती थी तो उनके पिताजी उन्हें अपने पास बैठा लेते थे ताकि उन्हें भी पता चले कि देश दुनिया में क्या हो रहा है।
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1945 में लेखिका हाई स्कुल पास करके सावित्री गल्र्स हाईस्कूल में फस्र्ट इयर में प्रवेश लिया। वहाँ उनका परिचय शीला अग्रवाल से हुआ। जो काॅलेज की प्राध्यापिका थी। प्राध्यापिका ने उन्हें साहित्य से परिचय कराया तथा साहित्य में रूचि जगाई। लेखिका ने साहित्य के माध्यम से देश की स्थितियों को जानने-समझने लगी। जिस कारण वह स्वाधीनता आंदोलन में भी हिस्सा लेने लगी।
1947 के मई माह में प्राध्यापिका शीला अग्रवाल को काॅलेज प्रशासन ने अनुशासनहीनता का आरोप लगाकर नोटिस दिया, जिनमें लड़कीयों को भड़काने और अनुशासन भंग करने में सहयोग करने का आरोप लगाया गया था। इसके अलावा थर्ड ईयर की क्लासेज बंद करके लेखिका और एक दो अन्य लड़कीयों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई। इस को लेकर लड़कीयों ने काॅलेज के बाहर खुब प्रदर्शन किया। बाद में काॅलेज को थर्ड ईयर की क्लासेज फिर से शुरू करनी पड़ी। उस समय इस खुशी से भी बड़ी खुशी लेखिका को देश को स्वाधीनता मिल जाने की हुई थी।
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