इस पोस्ट में हमलोग सीबीएसई बोर्ड के हिन्दी के गद्य भाग के पाठ तेरह ‘मानवीय करूणा की दिव्य चमक पाठ का व्याख्या कक्षा 10 हिंदी’ (cbse class 10 Hindi Manviya karuna ki divya chamak summary) के व्याख्या को पढ़ेंगे।
13. मानवीय करूणा की दिव्य चमक
पाठ का सारांश
लेखक को ईश्वर से शिकायत है कि जिस फादर की रगों में सभी व्यक्तियों के लिए मिठास भरे अमृत के अलावा और कुछ नहीं था, उसके लिए ईश्वर ने जहरबाद (एक तरह का जहरीला फोड़ा) को क्यों बनाया। फादर ने अपना सारा जीवन प्रभु की आस्था और उपासना में बिताया, लेकिन अंतिम समय में उन्हें बहुत ज्यादा शारीरिक दुःख सहनी पड़ी। लेखक को पादरी के सफेद चोगे से ढ़की आकृति, गोरा रंग, सफेद झाँईं मारती भूरी दाढ़ी, नीली आँखे तथा गले लगाने को आतुर फादर बहुत याद आते हैं।
लेखक को बिते हुए ‘परिमल‘ के वो दिन याद आते हैं जब वे सभी एक पारिवारिक रिश्ते में बँधे थे, जिसके सबसे बड़े सदस्य फादर थे। जब सभी हँसी मज़ाक करते तो फादर उसमें छिपे अंदाज से शामिल रहते। लेखक तथा उसके मित्रों के घरों में किसी भी उत्सव और संस्कार में वह बड़े भाई या पुरोहित की तरह खड़े होकर उन्हें आशीर्वादों से भर देते थे। लेखक को बीती वो सारी बातें याद आती है जब लेखक को फादर ने उनके मुख में पहली बार अन्न डाला था।
जब फादर बेल्जियम में इंजीनियर के आखरी वर्ष में थे, तब उनके मन में सबकुछ छोड़कर कुछ बनने की इच्छा जागी, लेकिन तब उनके घर में एक बहन, दो भाई, माँ पिता सभी लोग थे। जीस जगह पर रहते थे वो जगह का नाम रेम्पसचैपल था। जब उन्हे माँ की याद आती तो फादर अपने अभ्न्नि मित्र डाफ रघुवंश को अपनी माँ की चिट्ठियाँ दिखाया करते थें उनका एक भाई काम करता था और एक भाई पादरी हो गया था। उनकी बहन जिद्दी और पिता व्यवसायी थे। भारत में बसने के बाद वो अपने परिवार से मिलने दो-तीन बार बेल्जियम भी गए थे।
जब फादर इंजीनियरिंग के आखरी वर्ष में थे, तो वह अपने धर्म गुरू के पास जाकर बोले कि मैं संन्यास लेना चाहता हूँ। वह संन्यास लेने से पहले भारत जाना चाहते थे और वह भारत आ गए। ‘जिसेट संघ’ में दो साल पादरियों के साथ रहकर धर्म के बारे में अध्ययन किया और 9-10 साल तक दार्जिलिंग में पढ़ाई की। उन्होंने कोलकाता में बी. ए. किया और बाद में उन्होंने इलाहाबाद से एम. ए. किया। फादर ने 1950 में प्रयाग विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में रहकर रामकथा उत्पत्ति और विकास जैसे विषय पर शोध पुरा किया। और भी कई तरह के कार्य करने के बाद सेंट जेवियर्स कॉलेज राँची में हिन्दी और संस्कृत विभाग के अध्यक्ष हो गए। फिर दिल्ली आने के बाद 47 साल देश में रहकर 73 साल का जीवन जीने के बाद पंचतत्त्व में वीलीन हो गए।
फादर ने हिन्दी-अंग्रेजी शब्दकोश तैयार किया और इन्होंने बाईबिल का अनुवाद भी किया। हिन्दी के विकास और उसे राष्ट्रभाषा के रूप में देखने की बहुत चिंता थी फादर को। शायद हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रचारित करने का सवाल एक ऐसा सवाल था, जिसपर वह कभी-कभी झुंझला जाते थे। और इस बात का दुःख था कि हिन्दी वाले ही हिन्दी भाषा की उपेक्षा करते हैं।
फादर की मृत्यु 18 अगस्त 1982 में हुआ था। उस दिन सुबह दस बजे जब उनको कब्रगाह के आखरी छोड़ तक ले जाया गया जहाँ उन्हें धरती के गोद में सुलाने के लिए कब्र खुदी थी। वहीं पर उनका अंतिम संस्कार हुआ। वहाँ पर उपस्थित कई लोग उन्हें श्रद्धांजली अर्पित करते हुए कहा कि फादर बुल्के इस धरती में जा रहे हैं। इस धरती से ऐसे रत्न और पैदा हों। यह कहने के बाद उनका मृत शरीर कब्र में उतार दिया। फादर को यह पता नहीं था कि उनकी मृत्यु पर कोई रोएगा। लेकिन उस समय उनके लिए रोने वालो कि कमी नहीं थी। लेखक ने फादर बुल्के को ‘मानवीय करूणा की दिव्य चमक’ कहकर पुकारा है। Manviya karuna ki divya chamak class 10
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