पाठ-2
जॉर्ज पंचम की नाक
लेखक-परिचय— कमलेश्वर नई कहानी के प्रमुख रचनाकार हैं। उनका जन्म 1932 ई. में उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में हुआ था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. करने के बाद तथा पत्रकारिता से अत्यधिक लगाव होने के कारण इन्होंने सारिका, दैनिक जागरण तथा दैनिक भास्कर जैसी पत्रिकाओं का संपादन कार्य किया। कमलेश्वर की प्रमुख रचनाएँ हैं— मांस का दरिया, कस्बे का आदमी, तलाश, ज़िंदा मुर्दे (कहानी संग्रह); वही बात, एक सड़क सत्तावन गलियाँ, कितने पाकिस्तान। (उपन्यास); अधूरी आवाज़, चारुलता (नाटक)। कमलेश्वर ने अपनी कहानियों में सामान्य जन के जीवन की पीड़ाओं, समस्याओं का चित्रण किया है। इनकी रचनाओं में उर्दू, अंग्रेज़ी तथा आंचलिक शब्दों का प्रयोग मिलता है। कमलेश्वर को साहित्य अकादमी पुरस्कार व भारत सरकार के पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। उनका निधन 27 जनवरी, 2007 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ।
पाठ परिचय—नाक जो कि इज्जत का प्रतीक मानी जाती है। इस संदर्भ के माध्यम से लेखक ने व्यंग्य करते हुए सत्ता एवं सत्ता से जुड़े सभी लोगों की मानसिकता को प्रदर्शित किया है, जो अंग्रेज़ी हकूमत को कायम रखने के लिए भारतीय नेताओं की नाक काटने को तैयार हो जाते हैं। लेखक ने इस रचना के माध्यम से बताया है कि रानी का भारत आगमन महत्त्वपूर्ण विषय है जिसके लिए जॉर्ज पंचम की नाक मूर्ति पर होना अनिवार्य है, क्योंकि वह रानी के आत्मसम्मान के लिए अनिवार्य है। इसके साथ यह रचना पत्रकारिता जगत के लोगों पर भी व्यंग्य करती है एवं सफल पत्रकार की सार्थकता को भी उजागर करती है। इसमें सरकारी तंत्र का लोगों द्वारा रानी के सम्मान में की गई तैयारियों का वर्णन किया गया है।
पाठ का सार
इंग्लैंड की रानी एलिज़ाबेथ द्वितीय अपने पति के साथ हिंदुस्तान आने वाली थी। चर्चा अख़बारों में हो रही थी। उनका सेक्रेटरी और जासूस उनसे पहले इस महाती तूफानी दौरा करने वाले थे। इंग्लैंड के अख़बारों की कतरनें हिंदुस्तानी अख़बारों में दूसरे दिन चिपकी नज़र आती थीं, जिनमें रानी एलिज़ाबेथ एवं उनसे जुड़े लोगों के समाचार छपते। इस प्रकार की खबरों से भारत की राजधानी में तहलका मचा हुआ जिसके बावरची पहले महायुद्ध में जान हथेली पर लेकर लड़ चुके हैं, उसकी शान के क्या कहने और वही रानी दिल्ली आ रही है। उसका स्वागत भी ज़ोरदार होना चाहिए।
नई दिल्ली में एक बड़ी मुश्किल जो सामने आ रही थी, वह थी जॉर्ज पंचम की नाक किसी समय इस नाक के लिए बड़े तहलके मचे थे। अख़बारों के पन्ने रंग गए थे। राजनीतिक पार्टियाँ इस बात पर बहस कर रही थीं कि जॉर्ज पंचम की नाक रहने दी जाए या हटा दी जाए। कुछ पक्ष में थे, तो कुछ विरोध कर रहे थे। आंदोलन चल रहा था। जॉर्ज पंचम की नाक के लिए हथियारबंद पहरेदार तैनात कर दिए गए थे, किंतु एक दिन इंडिया गेट के सामने वाली जॉर्ज पंचम की लाट (मूर्ति) की नाक एकाएक गायब हो गई। बावजूद इसके कि हथियारबंद पहरेदार अपनी जगह तैनात थे और गश्त लगती रही फिर भी लाट की नाक चली गई। रानी के आने की बात सुनकर नाक की समस्या बढ़ गई। देश के शुभचिंतकों की एक बैठक हुई, जिसमें हर व्यक्ति इस बात पर सहमत था कि अगर यह नाक नहीं रही, तो हमारी भी नाक नहीं रह जाएगी। इसलिए एक मूर्तिकार को फ़ौरन दिल्ली बुलाकर मूर्ति की नाक लगाने का आदेश दिया गया। मूर्तिकार ने जवाब दिया कि नाक तो लग जाएगा।
पहले मुझे इस लाट के निर्माण का समय और जिस स्थान से यह पत्थर लाया गया, उसका पता चलना चाहिए। एक क्लर्क को इसकी पूरी छानबीन करने का काम सौपा गया। क्लर्क ने बताया कि फाइलों में कहीं भी नहीं है।
नाक लगाने के लिए एक कमेटी बनाई गई और उसे काम सौंपा गया कि किसी भी कीमत पर नाक लगनी चाहिए। मूर्तिकार को फिर बुलाया गया। उसने कहा कि पत्थर की किस्म का पता नहीं चला, तो कोई बात नहीं। मैं हिंदुस्तान के हर पहाड़ पर जाकर ऐसा ही पत्थर खोजकर लाऊँगा।
मूर्तिकार ने हिंदुस्तान के पहाड़ी प्रदेशों और पत्थरों की खानों के दौरे किए, लेकिन असफल रहा। उसने बताया कि इस किस्म का पत्थर कहीं नहीं मिला। यह पत्थर विदेशी है। सभापति ने कहा कि विदेशों की सभी चीजें हम अपना चुके हैं दिल-दिमाग, तौर-तरीके और रहन-सहन। जब हिंदस्तान में ‘बाल डांस’ तक मिल जाता है, तो पत्थर क्यों नहीं मिल सकता?
मूर्तिकार ने इसका हल निकालते हुए कहा कि यदि यह बात अखबार वालों तक न पहुँचे तो मैं बताना चाहूँगा कि हमारे देश में अपने नेताओं की मूर्तियाँ भी हैं। यदि आप लोग ठीक समझें तो जिस मूर्ति की नाक इस लाट पर ठीक बैठे, उसे लगा दिया जाए। सभी को लगा कि समस्या का असली हल मिल गया। मूर्तिकार फिर देश-दौरे पर निकल पड़ा। उसने पूरे भारत का भ्रमण करके दादाभाई नौरोजी, गोखले, तिलक, शिवाजी, गांधीजी, सरदार पटेल, गुरुदेव रवींद्रनाथ, सुभाषचंद्र बोस, राजा राममोहन राय, चद्रशेखर आज़ाद, मोतीलाल नेहरू, मदनमोहन मालवीय, लाला लाजपतराय, भगत सिंह आदि की लाटों को देखा, किंतु वे सब उससे बड़ा थी। मूर्तिकार ने बिहार सेक्रेटरिएट के सामने सन् बयालीस में शहीद होने वाले बच्चों की मूर्तियों की नाक भी देखी, किंतु वे भी उससे बड़ी थीं।
रानी के लिए सब तैयारियाँ पूरी हो गई, मूर्ति कोमलमलकर नहलाया गया था। रोगन लगाया गया था,लेकिन सबसे बड़ी समस्या नाक थी।
अचानक मर्तिकार ने एक हैरतअंगेज करने वाला विचार व्यक्त किया कि चालीस करोड़लोगों में से कोई एक जिंदा नाक काटकर लगा दी जाए। इसकी जिम्मेदारी मूर्तिकार को सौंपी गई। अखबारों में सिर्फ इतनाछापा गयाकि नाक का मसला हल हो गया है। इंडिया गेटपर बड़ा वाली जॉर्ज पंचम की लाट को नाक लग रही है। नाक लगाने से पहले हथियारबंद पहरेदारों की तैनाती हुई। मूर्ति के आस-पास का तालाब सुखाकर साफ किया गया और ताजा पानी डाला गया ताकि मूर्ति को लगने वाली जिंदा नाक सुख न पाए। इस बात की ख़बर जनता को नहीं थी। यह तैयारियाँ भीतर-भीतर चल रही थीं। रानी के आने का दिन नजदीक आता जा रहा था। आखिर एक दिन जॉर्ज पंचम की नाक लग गई।
अगले दिन अखबारों में ख़बरें छापी गई कि जॉर्ज पंचम की लाट को जो नाक लगाई गई है, वह बिलकुल असली सी लगती है। उस दिन के अख़बारों में एक बात और गौर करने की थी-उस दिन देश में कहीं भी किसी उद्घाटन की ख़बर नहीं थी। किसी ने कोई फीता नहीं काटा था। कोई सार्वजनिक सभा नहीं हुई थी। किसी का अभिनंदन नहीं हुआ था, कोई मानपत्र भेंट नहीं किया गया था। किसी हवाईअड्डे या स्टेशन पर स्वागत-समारोह नहीं हुआ था। किसी का चित्र भी नहीं छपा था।
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