पञ्चमः पाठः
जननी तुल्यवत्सला
पाठ परिचय – महाभारत में अनेक ऐसे प्रसंग हैं जो आज के युग में भी उपादेय हैं। महाभारत के वनपर्व से ली गई यह कथा न केवल मनुष्यों अपितु सभी जीवजन्तुओं के प्रति समदृष्टि पर बल देती है। समाज में दुर्बल लोगों अथवा जीवों के प्रति भी माँ की ममता प्रगाढ़ होती है, यह इस पाठ का अभिप्रेत है।
प्रस्तुतः पाठः महर्षिवेदव्यासविरचितस्य ऐतिहासिकग्रन्थस्य महाभारतस्य ”वनपर्व” इत्यतः गृहीतः। इयं कथा सर्वेषु प्राणिषु समदृष्टिभावनां प्रबोधयति। अस्याः अभीप्सितःअर्थोऽस्ति यत् समाजे विद्यमानान् दुर्बलान् प्राणिनः प्रत्यपि मातुः वात्सल्यं प्रकर्षेणैव भवति।
प्रसङ्गः- प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य पुस्तक ‘शेमुषी’ (द्वितीयो भागः) में संकलित पाठ ‘जननी तुल्यवत्सला’ से अवतरित है । इस पाठ का संकलन वेदव्यास रचित ‘महाभारत’ के ‘वनपर्व’ से किया गया है। इस पाठ में गाय के मातृत्व की चर्चा करते हुए यह बताया गया है कि माता के लिए सभी संतान बराबर होती हैं। उसके हृदय में अपनी सभी संतानों के लिए समान प्रेमभाव रहता है।
कश्चित् कृषकः बलीवर्दाभ्यां क्षेत्राकर्षणं कुर्वन्नासीत्। तयोः बलीवर्दयोः एकः शरीरेण दुर्बलः जवेन गन्तुमशक्तश्चासीत्। अतः कृषकः तं दुर्बलं वृषभं तोदनेन नुदन् अवर्तत। सः ऋषभः हलमूढ्वा गन्तुमशक्तः क्षेत्रे पपात। क्रुद्ध: कृषीवलः तमुत्थापयितुं बहुवारम् यत्नमकरोत्। तथापि वृषः नोत्थितः।
व्याख्या:- कोई किसान दो बैलों से खेत की जुताई कर रहा था। उन दोनों बैलों में से एक शरीर से कमजोर था और तेज़ गति से चलने में असमर्थ था। अतः किसान उस कमजोर बैल को कष्ट देते हुए हाँक रहा था। वह बैल हल उठाकर चलने में असमर्थ होकर खेत में गिर गया। क्रोधित किसान ने उसको उठाने के लिए बहुत बार प्रयत्न किया। फिर भी बैल नहीं उठा।
भूमौ पतितं स्वपुत्रं दृष्ट्वा सर्वधेनूनां मातुः सुरभेः नेत्राभ्यामश्रूणि आविरासन् । सुरभेरिमामवस्थां दृष्ट्वा सुराधिप: तामपृच्छत्-”अयि शुभे! किमेवं रोदिषि? उच्यताम्य्” इति। सा च
पृथ्वी पर गिरे हुए अपने पुत्र को देखकर सभी गायों की माता सुरभि की दोनों आँखों से आँसू आने लगे। सुरभि की ऐसी स्थिति देखकर देवताओं के राजा (इन्द्र) ने उनसे पूछा – “हे कल्याणकारिणी! (आप) क्यों इस प्रकार रो रही हैं ? कहें (बताएँ) ।” और वह ( कहने लगी ) –
विनिपातो न वः कश्चिद् दृश्यते त्रिदशाध्पि!।
अहं तु पुत्रां शोचामि, तेन रोदिमि। कौशिक!।।
हे देवताओं के राजा इन्द्र ! किसी का कष्ट (विनाश) मुझसे देखा नहीं जाता। मैं तो उस पुत्र (कमजोर बैल) के लिए सोच रही हूँ (चिंतित हूँ) । हे इन्द्र ! इस कारण मैं रो रही हूँ।
” भो वासव! पुत्रास्य दैन्यं दृष्ट्वा अहं रोदिमि। सः दीन इति जानन्नपि कृषकः तं बहुधा पीडयति। सः कृच्छ्रेण भारमुद्वहति। इतरमिव धुरं वोढुं सः न शक्नोति। एतत् भवान् पश्यति न?” इति प्रत्यवोचत्।
”भद्रे! नूनम्। सहस्राधिकेषु पुत्रेषु सत्स्वपि तव अस्मिन्नेव एतादृशं वात्सल्यं कथम् ? ” इति इन्द्रेण पृष्टा सुरभिः प्रत्यवोचत् –
यदि पुत्रासहस्रं मे वात्सल्यं सर्वत्र सममेव मे।
दीने च तनये देव, प्रकृत्याडइयाध्कि कृपा।
व्याख्या:- “हे देवराज इन्द्र ! पुत्र की दयनीय अवस्था देखकर मैं रो रही हूँ। वह दीन (कमजोर) है, यह जानते हुए भी किसान उसे अनेक तरह से पीड़ित कर ता है । वह कठिनाई से भार ढोता है। दूसरों के समान वह जुए को नहीं ढो सकता। यह तो आप देखते हैं न ?” ऐसा उसने जवाब दिया। “हे कल्याणकारिणी ! निश्चय ही । हजार से भी अधिक पुत्रों के होते हुए भी आपका इसी पुत्र के प्रति इस प्रकार का प्रेमभाव किसलिए है ?” ऐसा इन्द्रदेव द्वारा पूछे जाने पर गौमाता सुरभि ने जवाब दिया-
हे देवराज इन्द्र ! यदि मेरे हजार पुत्र हैं तो सब जगह वे मेरे लिए समान ही हैं। पर उनमें भी जो सबसे दीन-हीन हैं, उस पुत्र के लिए मेरी अधिक कृपा रहती है।
”बहून्यपत्यानि मे सन्तीति सत्यम्। तथाप्यहमेतस्मिन् पुत्रे विशिष्य आत्मवेदनामनुभवामि। यतो हि अयमन्येभ्यो दुर्बलः। सर्वेष्वपत्येषु जननी तुल्यवत्सला
एव। तथापि दुर्बले सुते मातुः अभ्यधिका कृपा सहजैव”
इति। सुरभिवचनं श्रुत्वा भृशं विस्मितस्याखण्डलस्यापि
हृदयमद्रवत्। स च तामेवमसान्त्वयत्-” गच्छ वत्से!
सर्वं भद्रं जायेत।”
अचिरादेव चण्डवातेन मेघरवैश्च सह प्रवर्षः
समजायत। लोकानां पश्यताम् एव सर्वत्र जलोपप्लवः
सञ्जातः। कृषकः हर्षातिरेकेण कर्षणविमुखः सन् वृषभौ नीत्वा गृहमगात्।
अपत्येषु च सर्वेषु जननी तुल्यवत्सला।
पुत्रो दीने तु सा माता कृपार्द्रहृदया भवेत्।।
व्याख्या:- ” मेरी बहुत सन्तानें हैं, यह सत्य है। फिर भी मैं इस पुत्र के प्रति विशेष आत्मीय पीड़ा का अनुभव कर रही हूँ। क्योंकि यह अन्यों (सन्तानों) से कमज़ोर है । सभी सन्तानों से माता एक समान ही प्रेमभाव रखती हैं। फिर भी दर्बल पुत्र के प्रति माता की अधिक कृपा होना स्वाभाविक ही है ।” गौमाता सुरभि की बात सुनकर बहुत अधिक आश्चर्यचकित इन्द्रदेव का भी हृदय द्रवित हो गया और उन्होंने उसे सान्त्वना देते हुए कहा- ” जाओ पुत्री ! सबका कल्याण होगा । “
शीघ्र ही प्रचण्ड (तीव्र) हवा और बादलों के गर्जन के साथ वर्षा शुरू हो गई। देखते ही देखते हर जगह जल के कारण संकट उत्पन्न हो गया अर्थात भारी वर्षा होने लगी। किसान अत्यधिक खुशी के मारे खेत जोतने के कार्य से विमुख होकर दोनों बैलों को लेकर घर आ गया।
सभी सन्तानों के प्रति माता समान रूप से स्नेह रखने वाली होती है। दयनीय या दुर्बल अवस्था वाले पुत्र के प्रति तो वह विशेष कृपा रखने वाली तथा द्रवित हृदय वाली होती है।
Leave a Reply