इस पोस्ट में हमलोग सीबीएसई बोर्ड के हिन्दी के गद्य भाग के पाठ ग्यारह ‘बालगोबिन्द भगत कक्षा 10 हिंदी’ (cbse class 10 Hindi Balgobin Bhagat Class 10 Explanation) के व्याख्या को पढ़ेंगे।
11. बालगोबिन्द भगत
लेखक- रामबृक्ष बेनीपुरी
प्रस्तुत पाठ ‘बालगोबिन्द भगत‘ एक बहुत ही रोचक रेखाचित्र है। इस रेखाचित्र के रचनाकार रामबृक्ष बेनीपुरी है। यह एक महान लेखक है। रामबृक्ष बेनिपूरी को कलम का जादूगर भी कहा जाता है। रामबृक्ष बेनिपूरी के द्वारा लिखित रेखाचित्र बालगोबिन्द भगत पाठ में बालगोबिन्द भगत के रोजमर्रा के बारे में लेखक बताते हैं। बालगोबिन्द भगत के जीवनी के बारे में बताते हुए लेखक यह सिद्ध करते हैं कि धर्मपाल, पूजा-पाठ आदि करने से नहीं होती है। बल्कि आचरण की पवित्रता और शुद्धता में होती है। बालगोबिन्द भगत की वेशभूषा भी साधुओं जैसी नहीं है। लेकिन उनकी दिनचर्या और निर्णय मनुष्य की सच्ची और सही परिभाषा रचने में सहायक है।
बालगोबिन्द भगत मझौले कद यानि (मिडियम साइज के) गोरे चिट्टे आदमी थे। वे 60 साल के ऊपर के ही थे। उनकी बालें पक गई थी। लम्बी दाढ़ी या जटा आदि नहीं रखते थे। किन्तु हमेशा उनका चेहरा सफेद बालों से ही जगमग किए रहता। कपड़े बिल्कुल कम पहनते थे। कमर में एक लंगुटी मात्र और सिर में कबीरपंथीयों की सी कनफटी टोपी, जाड़ा में एक काली कंबर ऊपर से ओढ़े रहते थे। वह मस्तक पर हमेशा रामानंदी चंदन और गले में तुलसी के माला बंधे रखते थे।
भगत साधु एवं गृहस्थ दोनों थे। पत्नी मर गई थी। उनका एक बेटा-बहु तथा थोड़ी खेती-बारी भी थी। परिवार वाले होते हुए भी वह साधु थे। कबीर को ‘साहब‘ मानते थे। और उन्हीं के गीतों को गाते थे। वह कभी झूठ नहीं बालते और खरा व्यवहार रखते थे। वह किसी से दो टूक बात करने में संकोच नहीं रखते। वह दूसरों के खेत में शौच के लिए नहीं बैठते। जो कुछ खेत में पैदा होता, उसे सिर पर लाद कर चार कोश की दूरी पर अवस्थित कबीरपंथी मठ में भेंट स्वरूप पहुँचा आते। प्रसाद रूप में जो कुछ वहाँ मिलता, उसी से गुजारा करते। वे संगीत के अलौकिक गायक थे। उनके मधुर गान पर लेखक मुग्ध थे। क्योंकि कबीर के पद उनके मुख से निकलकर सजीव हो उठते।आसाढ़ के रीमझीम फुहारे में समुचा गाँव धान की रोपाई कर रहा है। ऐसा समय में एक स्वर तरंग झंकार सी कर उठती है। सभी लोग गाना सुनकर झुम उठते हैं।
भारत की वह अंधेरी अधरतिया, थोड़ी देर पहले मुसलाधार वर्षा खत्म हुई थी कि भगत की खंजरी की आवाज सुनाई पड़ती है। वे गीत गा रहे हैं। ‘‘गोदी में पीउवा चमक उठे, सखीया चिहुक उठ ना‘‘ पिया गोद में ही, किन्तु वह समझती है कि वह अकेली है। उनका यह गीत अकस्मात कौंध उठने वाली बिजली की तरह चौंका देता है। सारा संसार गहरी नींद में सोया है। भगत का संगीत जाग तथा जगा रहा है। ‘‘तेरी गठरी में लगा चोर, मुसाफिर जाग जरा‘‘ कार्तिक आते ही भगत की परभातियां शुरू हो जाती, जो फाल्गुन तक चलती। वह सुबह होते ही नदी स्नान करके लौटते और पोखरे के भिंडे पर बैठ कर खँजरी बजाते हुए गाना गाने लगते।
एक दिन की बात है उनका इकलौता बेटा की मृत्यु हो गई। वह बेटा की मृत्यु से दुःखी नहीं बल्कि खुश थे। वह कहते थे कि परमात्मा से आत्मा की मिलन हो गई। इससे अधिक खुशी की बात क्या हो सकती है। बेटे के मृत्यु के बाद वह अपने पुत्र वधु को उनके भाई के साथ उसके घर भेज दिए।
भगत जी हर वर्ष तीस कोस दूर गंगा स्नान करने के लिए पैदल ही चल पड़ते। रास्ते भर खँजरी बजाते, गीत गाते और प्यास लगने पर पानी पीते थे। इस यात्रा की अवधि में भूखे रहते, लेकिन इस लंबी उपवास में भी वह मस्त रहते। एक समय उनकी तबीयत खराब हो गई और वह मर गए। जब भोर में लोगों ने गीत नहीं सुना, जाकर देखे तो बालगोबिन्द भगत नहीं रहे। उनका मृत शरीर पड़ा था।
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