इस पोस्ट में हमलोग सीबीएसई बोर्ड के हिन्दी क्षितिज भाग 2 के गद्य भाग के पाठ सोलह ‘एक कहानी यह भी’ (CBSE/NCERT class 10 Hindi Naubatkhane me Ibadat Summary Notes Solutions) के व्याख्या को पढ़ेंगे।
16. नौबतखाने में इबादत
लेखक परिचय
लेखक का नाम- यतीन्द्र मिश्र
जन्म- 12 अप्रैल 1977 ई0, (43 वर्ष), अयोध्या, उत्तर प्रदेश
इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ से हिंदी भाषा में एम० ए० किया। इस समय ये अर्द्धवार्षिक पत्रिका ’सहित’ का संपादन कर रहे हैं। ये साहित्य और कलाओं के संवर्द्धन एवं अनुशीलन के लिए ’विमला देवी फाउंडेशन’ का संचालन 1999 ई0 से कर रहे हैं।
रचनाएँ- इनके तीन काव्य-संग्रह प्रकाशित हुए हैं- यदा-कदा, अयोध्या तथा अन्य कविताएँ और ड्योढ़ी का आलाप । इन्होंने प्रख्यात शास्त्रीय गायिका गिरिजा देवी के जीवन और संगीत साधना पर एक पुस्तक ’गिरीजा’ लिखी ।
पाठ परिचय- प्रस्तुत पाठ ‘नौबतखाने में इबादत’ प्रसिद्ध शहनाई वादक भारतरत्न उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ पर रोचक शैली में लिखा गया व्यक्तिचित्र है। इस पाठ में बिस्मिल्ला खाँ का जीवन- उनकी रुचियाँ, अंतर्मन की बुनावट, संगीत की साधना आदि गहरे जीवनानुराग और संवेदना के साथ प्रकट हुए हैं।Naubatkhane me Ibadat Summary
पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ ‘नौबतखाने में इबादत’ में शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की जीवनचर्या का उत्कृष्ट वर्णन किया गया है। इन्होंने किस प्रकार शहनाई वादन में बादशाहत हासिल की, इसी का लेखा-जोखा इस पाठ में है। 1916 ई० से 1922 ई० के आसपास काशी के पंचगंगा घाट स्थित बालाजी मंदिर के ड्योढ़ी के उपासना-भवन से शहनाई की मंगलध्वनि निकलती है। उस समय बिस्मिल्ला खाँ छः साल के थे। उनके बड़े भाई शम्सुद्दीन के दोनों मामा अलीबख्श तथा सादिक हुसैन देश के प्रसिद्ध सहनाई वादक थे।
उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का जन्म डुमराँव (बिहार) में एक संगीत-प्रमी परिवार में 1916 ई0 में हुआ। इनके बचपन का नाम कमरूद्दीन था। वह छोटी उम्र में ही अपने ननिहाल काशी चले गये और वहीं अपना अभ्यास शुरू किया। 14 साल की उम्र में जब वह बालाजी के मंदिर के नौबतखाने में रियाज के लिए जाते थे, तो रास्ते में रसूलनबाई और बतूलनबाई का घर था। इन्होंने अनेक साक्षात्कारों में कहा है कि इन्ही दोनों गायिकी-बहनों के गीत से हमें संगीत के प्रति आसक्ति हुई।
शहनाई को ’शाहनेय’ अर्थात् ’सुषिर वाद्यों में शाह’ की उपाधि दी गई है। अवधी पारंपरिक लोकगीतों और चैती में शहनाई का उल्लेख बार-बार मिलता
बिस्मिल्ला खाँ 80 वर्षों से सच्चे सुर की नेमत माँग रहें हैं तथा इसी की प्राप्ति के लिए पाँचों वक्त नमाज और लाखों सजदे में खुदा के नजदिक गिड़गिड़ाते हैं। उनका मानना है कि जिस प्रकार हिरण अपनी नाभि की कस्तूरी की महक को जंगलों में खोजता फिरता है, उसी प्रकार कमरूद्दीन भी यहीं सोचते आया है कि सातों सुरों को बरतने की तमीज उन्हें सलीके से अभी तक क्यों नहीं आई।
बिस्मिल्ला खाँ और शहनाई के साथ जिस मुस्लिम पर्व का नाम जुड़ा है, वह मुहर्रम है। इस पर्व के अवसर पर हजरत इमाम हुसैन और उनके कुछ वंशजों के प्रति दस दिनों तक शोक मनाया जाता है। इस शोक के समय बिस्मिल्ला खाँ के खानदान का कोई भी व्यक्ति न तो शहनाई बजाता है और न ही किसी संगीत कार्यक्रम में भाग लेता है।
आठवीं तारीख खाँ साहब के लिए खास महत्त्व की होती थी। इस दिन वे खड़े होकर शहनाई बजाते और दालमंडी से फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए, नौहा बजाते थे।
बिस्मिल्ला खाँ अपनी पुरानी यादों का स्मरण करके खिल उठते थे। बचपन में वे फिल्म देखने के लिए मामू, मौसी तथा नानी से दो-दो पैसे लेकर सुलोचना की नई फिल्म देखने निकल पड़ते थे।
Naubatkhane me Ibadat Summary
बिस्मिल्ला खाँ मुस्लमान होते हुए भी सभी धर्मों के साथ समान भाव रखते थे। उन्हें काशी विश्वनाथ तथा बालाजी के प्रति अपार श्रद्धा थी। काशी के संकटमोचन मन्दिर में हनुमान जयन्ती के अवसर पर वे शहनाई अवश्य बजाते थे। काशी से बाहर रहने पर वे कुछ क्षण काशी की दिशा में मुँह करके अवश्य बजाते थे।
उनका कहना था – ’क्या करें मियाँ, काशी छोड़कर कहाँ जाएँ, गंगा मइया यहाँ, बाबा विश्वनाथ यहाँ, बालाजी का मन्दिर यहाँ ।’ काशी को संगीत और नृत्य का गढ़ माना जाता है। काशी में संगीत, भक्ति, धर्म, कला तथा लोकगीत का अद्भुत समन्वय है। काशी में हजारों सालों का इतिहास है जिसमें पंडित कंठे महाराज, विद्याधरी, बड़े रामदास जी और मौजद्दिन खाँ थे।
बिस्मिल्ला खाँ और शहनाई एक दुसरे के पर्याय हैं। बिस्मिल्ला खाँ का मतलब बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई।
एक शिष्या ने उनसे डरते-डरते कहा- ’बाबा आपको भारतरत्न मिल चूका है, अब आप फटी लुंगी न पहना करें।’ तो उन्होंने कहा- ’भारतरत्न हमको शहनाई पर मिला है न कि लुंगी पर। लुंगीया का क्या है, आज फटी है तो कल सिल जाएगी। मालिक मुझे फटा सूर न बक्शें।
निष्कर्षतः बिस्मिल्ला खाँ काशी के गौरव थे। उनके मरते ही काशी में । संगीत, साहित्य और अदब की बहुत सारी परम्पराएँ लुप्त हो चुकी हैं। वे दो कौमों के आपसी भाईचारे के मिसाल थे। खाँ साहब शहनाई के बादशाह थे। यही कारण है कि इन्हें भारत रत्न, पद्मभूषण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार तथा अनेक विश्वविद्यालय की मानद उपाधियाँ मिलीं। वे नब्बे वर्ष की आयु में 21 अगस्त, 2006 को खुदा के प्यारे हो गए।
Naubatkhane me Ibadat Summary
लघु-उत्तरीय प्रश्न (20-30 शब्दों में)____दो अंक स्तरीय
प्रश्न 1. बिस्मिल्ला खाँ सजदे में किस चीज के लिए गिड़गिड़ाते थे? इससे उनके व्यक्तित्व का कौन-सा पक्ष उद्घाटित होता है? (Text Book)
उत्तर- बिस्मिल्ला खाँ जब इबादत में खुदा के समाने झुकते तो सजदे में गिड़गिड़ाकर खुदा से सच्चे सुर का वरदान माँगते । इससे पता चलता है कि खाँ साहब धार्मिक, संवेदनशील एवं निरभिमानी थे। संगीत-साधना हेतु समर्पित थे। अत्यन्त विनम्र थे ।
प्रश्न 2. सूषिर वाद्य किन्हें कहा जाता है? ’शहनाई’ शब्द की व्यत्पत्ति किस प्रकार हुई है? (Text Book)
उत्तर- सुषिर वाद्य ऐसे वाद्य हैं, जिनमें नाड़ी (नरकट या रीड) होती है, जिन्हें फूंककर बजाया जाता है। अरब देशों में ऐसे वाद्यों को ‘नय‘ कहा जाता है और उनमें शहनाई को ‘शाहनेय‘ अर्थात् ‘सूषिर वाद्यों में शाह‘ की उपाधि दी गई है, क्योंकि यह वाद्य मुरली, शृंगी जैसे अनेक वाद्यों से अधिक मोहक है।.
प्रश्न 3. ’संगीतमय कचौड़ी’ का आप क्या अर्थ समझते हैं? (Text Book)
उत्तर- कुलसुम हलवाइन की कचौड़ी को संगीतमय कहा गया है। वह जब बहुत गरम घी में कचौड़ी डालती थी, तो उस समय छन्न से आवाज उठती थी जिसमें कमरुद्दीन को संगीत के आरोह-अवरोह की आवाज सुनाई देती थी। इसीलिए कचौड़ी को ’संगीतमय कचौड़ी’ कहा गया है।
प्रश्न 4. डुमराँव की महत्ता किस कारण से है? (पाठ्य पुस्तक, 2012A,2015A)
उत्तर- डुमराँव की महत्ता शहनाई के कारण है। प्रसिद्ध शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ का जन्म डुमराँव में हुआ था। शहनाई बजाने के लिए जिस ’रीड’ का प्रयोग होता है, जो एक विशेष प्रकार की घास ’नरकट’ से बनाई जाती है, वह डुमराँव में सोन नदी के किनारे पाई जाती है।
Naubatkhane me Ibadat Summary
प्रश्न 5. बिस्मिल्ला खाँ जब काशी से बाहर प्रदर्शन करते थे तो क्या करते थे? इससे हमें क्या सीख मिलती है? (पाठ्य पुस्तक)
उत्तर- बिस्मिल्ला खाँ जब कभी काशी से बाहर होते तब भी काशी विश्वनाथ को नहीं भूलते। काशी से बाहर रहने पर वे उस दिशा में मुँह करके थोड़ी देर तक शहनाई अवश्य बजाते थे। इससे हमें धार्मिक दृष्टि से उदारता एवं समन्वयता की सीख मिलती है। हमें धर्म को लेकर किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं रखना चाहिए।
प्रश्न 4. डुमराँव की महत्ता किस कारण से है? (पाठ्य पुस्तक, 2012A, 2015A)
उत्तर- डुमराँव की महत्ता शहनाई के कारण है। प्रसिद्ध शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ का जन्म डुमराँव में हुआ था। शहनाई बजाने के लिए जिस ’रीड’ का प्रयोग होता है, जो एक विशेष प्रकार की घास ’नरकट’ से बनाई जाती है, वह डुमराँव में सोन नदी के किनारे पाई जाती है।
प्रश्न 5. बिस्मिल्ला खाँ जब काशी से बाहर प्रदर्शन करते थे तो क्या करते थे? इससे हमें क्या सीख मिलती है? (पाठ्य पुस्तक)
उत्तर- बिस्मिल्ला खाँ जब कभी काशी से बाहर होते तब भी काशी विश्वनाथ को नहीं भूलते। काशी से बाहर रहने पर वे उस दिशा में मुँह करके थोड़ी देर तक शहनाई अवश्य बजाते थे। इससे हमें धार्मिक दृष्टि से उदारता एवं समन्वयता की सीख मिलती है। हमें धर्म को लेकर किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं रखना चाहिए।
प्रश्न 6. पठित पाठ के आधार पर बिस्मिल्ला खाँ के बचपन का वर्णन करें। (Text Book)
उत्तर- कमरुद्दीन यानी उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ चार साल की उम्र में ही नाना की शहनाई को सुनते और शहनाई को ढूँढते थे। उन्हें अपने मामा का सान्निध्य भी बचपन में शहनाईवादन की कौशल विकास में लाभान्वित किया। 14 साल की उम्र में वे बालाजी के मंदिर में रियाज़ करने के क्रम में संगीत साधना करते और आगे चलकर महान कलाकार हुए।
प्रश्न 8. पठित पाठ के आधार पर मुहर्रम पर्व से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव का परिचय दें। (Text Book)
उत्तर- मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ का अत्यधिक जुड़ाव था । मुहर्रम के महीने में वे न तो शहनाई बजाते थे और न ही किसी संगीत-कार्यक्रम में सम्मिलित होते थे। मुहर्रम की आठवीं तारीख को बिस्मिल्ला खाँ खड़े होकर ही शहनाई बजाते थे। वे दालमंडी में फातमान के लगभग आठ किलोमीटर की दूरी तक रोते हुए नौहा बजाते पैदल ही जाते थे।
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